विज्ञान की दुनिया एक असीम असंख्य सीमा का ज्ञान है , जहा जा पाना और उसे पा पाना उसी तरह असंभव सा लगता है जैसे सूरज के पास जा पाना । अब आज का विज्ञान ब्रह्मांड के दूसरे संजीवो को खोजने में लगा है,और धरती के लगभग सभी अंतरिक्ष अनुसंधान वाले मंगल तक पहुंच चुके है । लेकिन अभी भी एलियन की खोज होना बाकी है जिसे अभी कपोल कल्पना ही माना है लेकिन सोचने की बात ये है की धरती पर मानव है उसी तरह इस ब्रह्मांड की कोई और धरती होगी और वहा के वासी भी होगे । और हो सके तो उनकी पहुंच अपनी धरती तक हो गई हो जो हमारे बीच ही रह रहे हो जैसे की जासूस ?? क्या जाने इसमें कितनी सचाई है या मेरी कल्पना बाकी उनकी कहानियां इन दिनों बहुत सी जगह सुनने में आती है सबसे ज्यादा अमेरिका तो क्या अमेरिका के एलियन से कोई संबंध या एलियन का उस धरती से सीधा जुड़ाव लगता है। सुनने में हैरान करता है की वहा की फिल्मों में इस तरह की चीज़े दिखाई गई है जैसे की "Men in black" और "Stranger things" में । बाकी आप अपनी राय जरूर बताएं ।
_मेहरानगढ़ का किला_
मेहरानगढ दुर्ग भारत के राजस्थान प्रांत में जोधपुर शहर में स्थित है। पन्द्रहवी शताब्दी का यह विशालकाय किला, पथरीली चट्टान पहाड़ी पर, मैदान से १२५ मीटर ऊँचाई पर स्थित है और आठ द्वारों व अनगिनत बुर्जों से युक्त दस किलोमीटर लंबी ऊँची दीवार से घिरा है। बाहर से अदृश्य, घुमावदार सड़कों से जुड़े इस किले के चार द्वार हैं। किले के अंदर कई भव्य महल, अद्भुत नक्काशीदार किवाड़, जालीदार खिड़कियाँ और प्रेरित करने वाले नाम हैं। इनमें से उल्लेखनीय हैं मोती महल, फूल महल, शीश महल, सिलेह खाना, दौलत खाना आदि। इन महलों में भारतीय राजवेशों के साज सामान का विस्मयकारी संग्रह निहित है। इसके अतिरिक्त पालकियाँ, हाथियों के हौदे, विभिन्न शैलियों के लघु चित्रों, संगीत वाद्य, पोशाकों व फर्नीचर का आश्चर्यजनक संग्रह भी है।[1]
यह किला भारत के प्राचीनतम किलों में से एक है और भारत के समृद्धशाली अतीत का प्रतीक है। राव जोधा जोधपुर के राजा रणमल की २४ संतानों मे से एक थे। वे जोधपुर के पंद्रहवें शासक बने। शासन की बागडोर सम्भालने के एक साल बाद राव जोधा को लगने लगा कि मंडोर का किला असुरक्षित है। उन्होने अपने तत्कालीन किले से ९ किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर नया किला बनाने का विचार प्रस्तुत किया। इस पहाड़ी को भोर चिड़ियाटूंंक के नाम से जाना जाता था, क्योंकि वहाँ काफ़ी पक्षी रहते थे। राव जोधा ने 12 मई 1459 ई. को इस पहाडी पर किले की नीव डाली, जो कि आकृति का है | महाराज जसवंत सिंह (१६३८-७८) ने इसे पूरा किया। मूल रूप से किले के सात द्वार (पोल) (आठवाँ द्वार गुप्त है) हैं। प्रथम द्वार पर हाथियों के हमले से बचाव के लिए नुकीली कीलें लगी हैं। अन्य द्वारों में शामिल जयपोल द्वार का निर्माण १८०६ में महाराज मान सिंह ने अपनी जयपुर और बीकानेर पर विजय प्राप्ति के बाद करवाया था। फतेह पोल अथवा विजय द्वार का निर्माण महाराज अजीत सिंह ने मुगलों पर अपनी विजय की स्मृति मेंकरवाया था।[2]
राव जोधा को चामुँडा माता मे अथाह श्रद्धा थी। चामुंडा जोधपुर के शासकों की कुलदेवी होती है। राव जोधा ने १४६० मे मेहरानगढ किले के समीप चामुंडा माता का मंदिर बनवाया और मूर्ति की स्थापना की। मंदिर के द्वार आम जनता के लिए भी खोले गए थे। चामुंडा माँ मात्र शासकों की ही नहीं बल्कि अधिसंख्य जोधपुर निवासियों की कुलदेवी थी और आज भी लाखों लोग इस देवी को पूजते हैं। नवरात्रि के दिनों मे यहाँ विशेष पूजा अर्चना की जाती है।
मेहरानगढ दुर्ग की नींव में ज्योतिषी गणपत दत्त के ज्योतिषीय परामर्श पर ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी (तदनुसार, 12 मई 1459 ई) वार शनिवार को राजाराम मेघवाल को जीवित ही गाड़ दिया गया। राजाराम के सहर्ष किये हुए आत्म त्याग एवम स्वामी-भक्ति की एवज में राव जोधाजी राठोड़ ने उनके वंशजो को मेहरानगढ दुर्ग के पास सूरसागर में कुछ भूमि भी दी ( पट्टा सहित ), जो आज भी राजबाग के नाम से प्रसिद्ध हैं। होली के त्यौहार पर मेघवालों की गेर को किले में गाजे बाजे के साथ जाने का अधिकार हैं जो अन्य किसी जाति को नही है। राजाराम का जन्म कड़ेला गौत्र में केसर देवी की कोख से हुआ तथा पिता का नाम मोहणसी था।
मेहरानगढ़ के बारे में और अधिक जानकारी :

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मेहरानगढ़ किला, जोधपुर
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अवलोकन
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मेहरानगढ़ किला एक बुलंद पहाड़ी पर 150 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह शानदार किला राव जोधा द्वारा 1459 ई0 में बनाया गया था। यह किला जोधपुर शहर से सड़क मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। इस किले के सात गेट हैं जहां आगंतुक दूसरे गेट पर युद्ध के दौरान तोप के गोलों के द्वारा बनाये गये निशानों को देख सकते हैं। कीरत सिंह सोडा, एक योद्धा जो एम्बर की सेनाओं के खिलाफ किले की रक्षा करते हुये गिर गया था, के सम्मान में यहाँ एक छतरी है। छतरी एक गुंबद के आकार का मंडप है जो राजपूतों की समृद्ध संस्कृति में गर्व और सम्मान व्यक्त करने के लिए बनाया जाता है।
जय पोल गेट महाराजा मान सिंह द्वारा बीकानेर और जयपुरकी सेनाओं पर अपनी जीत का जश्न मनाने के लिए बनाया गया था। मुगलों के खिलाफ अपनी जीत की याद में एक और गेट फतेह पोल महाराजा अजीत सिंह द्वारा भी बनवाया गया था
किले की एक हिस्सा संग्रहालय में बदल दिया गया जहाँ शाही पालकियों का एक बड़ा संग्रह है। इस संग्रहालय में 14 कमरे हैं जो शाही हथियारों, गहनों, और वेशभूषाओं से सजे हैं। इसके अलावा, आगंतुक यहाँ मोती महल, फूल महल, शीशा महल, और झाँकी महल जैसे चार कमरे को भी देख सकते हैं।
मोती महल, जिसे पर्ल पैलेस के रूप में भी जाना जाता है, किले का सबसे बड़ा कमरा है। यह महल राजा सूर सिंह द्वारा बनवाया गया था, जहां वे अपनी प्रजा से मिलते थे। यहाँ, पर्यटक 'श्रीनगर चौकी', जोधपुर के शाही सिंहासन को भी देख सकते हैं। यहाँ पाँच छिपी बाल्कनी हैं जहां से राजा की पाँच रानियाँ अदालत की कार्यवाही सुनती थी।
फूल महल मेहरानगढ़ किले के विशालतम अवधि कमरों में से एक है। यह महल राजा का निजी कक्ष था। इसे फूलों के पैलेस के रूप में भी जाना जाता है, इसमें एक छत है जिसमें सोने की महीन कारीगरी है। महाराजा अभय सिंह ने 18 वीं सदी में इस महल का निर्माण करवाया। माना जाता है कि मुगल योद्धा, सरबुलन्द खान पर राजा की जीत के बाद अहमदाबाद से यह सोना लूटा गया था। शाही चित्र और रागमाला चित्रकला महाराजा जसवंत सिंह द्वितीय के शासनकाल के दौरान महल में लाये गये थे।
किले की एक हिस्सा संग्रहालय में बदल दिया गया जहाँ शाही पालकियों का एक बड़ा संग्रह है। इस संग्रहालय में 14 कमरे हैं जो शाही हथियारों, गहनों, और वेशभूषाओं से सजे हैं। इसके अलावा, आगंतुक यहाँ मोती महल, फूल महल, शीशा महल, और झाँकी महल जैसे चार कमरे को भी देख सकते हैं।
मोती महल, जिसे पर्ल पैलेस के रूप में भी जाना जाता है, किले का सबसे बड़ा कमरा है। यह महल राजा सूर सिंह द्वारा बनवाया गया था, जहां वे अपनी प्रजा से मिलते थे। यहाँ, पर्यटक 'श्रीनगर चौकी', जोधपुर के शाही सिंहासन को भी देख सकते हैं। यहाँ पाँच छिपी बाल्कनी हैं जहां से राजा की पाँच रानियाँ अदालत की कार्यवाही सुनती थी।
फूल महल मेहरानगढ़ किले के विशालतम अवधि कमरों में से एक है। यह महल राजा का निजी कक्ष था। इसे फूलों के पैलेस के रूप में भी जाना जाता है, इसमें एक छत है जिसमें सोने की महीन कारीगरी है। महाराजा अभय सिंह ने 18 वीं सदी में इस महल का निर्माण करवाया। माना जाता है कि मुगल योद्धा, सरबुलन्द खान पर राजा की जीत के बाद अहमदाबाद से यह सोना लूटा गया था। शाही चित्र और रागमाला चित्रकला महाराजा जसवंत सिंह द्वितीय के शासनकाल के दौरान महल में लाये गये थे।
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